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मुहावरा घुरे के दिन फिरते हैं

राघव जब काम से वापस घर लौटा तो देखा कि महेश कमरे में उदास बैठा था। उसकी हालत देख राघव समझ गया कि क्या बात हुई होगी।


क्या हुआ महेश? आज वाले इंटरव्यू में भी कोई फायदा नहीं हुआ। तुमने तैयारी तो बहुत अच्छी तरह से की थी। आज सुबह तुम्हारा आत्म विश्वास देख कर तो यही लग रहा था कि इस नौकरी को हासिल करने से तुम्हें कोई नहीं रोक सकता। लेकिन तु दिल छोटा मत कर। तेरी भी किस्मत बदलेगी। आखिर बारह बरस पीछे तो घुरे के भी दिन फिरते हैं। हम तो फिर भी इंसान हैं। तुम बोलो तो मैं अपने आफिस में तुम्हारी नौकरी के लिए बात करुं।" कहीं भी महेश की दाल ना गलती देख राघव ने फिर से वही सुझाव दिया।


"मुझे तेरे आफिस करने से कोई दिक्कत नहीं है लेकिन तु यह अच्छी तरह जानते हैं कि मैं यह नौकरी अपने दम पर पाना चाहता हूं। हां अगर तेरी कंपनी में सामने से कोई वैकेंसी निकली तो मैं जरूर वहां काम करुंगा। बुरा मत मानना लेकिन ऐसे किसी की सहायता लेनी मुझे पसंद नहीं। तु मेरी चिंता छोड़ और यह बता कि स्नेहा से तेरी बात आगे बढ़ी यां अभी भी हिचकिचाहट होती है। जब भी तुम उससे बात करने जाते हो तो हकलाने लग जाते हो।" महेश ने बात बदलने के आशय से राघव से पुछा तो राघव समझ गया कि वो वापस उस बात पर चर्चा नहीं करना चाहता।"


"अरे कहां यार, जब भी उसके पास बात करने जाता हूं तो दिल में अजीब सी बेचैनी महसूस होने लगती है। धड़कनों की आवाज लाउड स्पीकर की तरह कानों में गूंजने लग जाती हैं। पर आज हिम्मत करके मैंने उससे दोस्ती कर ही ली। अब धीरे धीरे उसके दिल में अपने लिए एहसास पैदा करुंगा और फिर शादी और बच्चे…….. स्नेहा के बारे में बोलते बोलते राघव को एहसास भी नहीं हुआ कि कब वो बहक गया था। 


बच्चों की बात आते ही उसने जीब दांतों तले दबाते हुए महेश की तरफ देखा तो वो होंठों पर शरारती मुस्कान लिए उसे ही देख रहा था। 


"सच में मैं तेरे लिए बहुत खुश हूं। अब बस स्नेहा और तुम्हें एक साथ देख लूं। फिर वापस अपने गांव लौट जाऊंगा। गांव से जो पैसे लेकर आया था। दो दिन में वो भी खत्म हो जाएंगे। यही दो दिन हैं मेरे पास अपनी किस्मत आजमाने के लिए। और हां साथ ही तुम्हें मुझे स्नेहा से भी अब तक नहीं मिलवाया। " महेश ने कहा तो उसके जाने की बात सुनकर राघव भी उदास हो गया। लेकिन महेश के सामने उसने यह जाहिर नहीं होने दिया।


तेरे जाने में अभी दो दिन बाकी हैं तो चल इन दो दिनों में मैं तुझे इलाहाबाद दर्शन करवाता हूं और साथ ही स्नेहा से भी मिलवा दूंगा। वरना तु गांव में यह बात फैला देगा कि राघव ने मुझे छोटे से डिब्बे में ही बंद कर रखा था।" राघव ने कहा तो महेश ने प्रश्नवाचक निगाहों से उसकी तरफ देखा तो राघव समझ गया कि वो डिब्बे वाली बात पर सोच रहा होगा।


याद है जब दिनेश काका इलाहाबाद से वापस गांव लौट कर आए थे तो शहर के जीवन का वर्णन करते हुए क्या कहा था।(फ्लैशबैक जब किसी ने दिनेश से कहा कि शहर में तो लोग बड़े बड़े बंगलों में रहते होंगे ना तो दिनेश ने बताया था कि कहां बड़े बंगले भाई। वहां के कमरे तो रेल गाड़ी के डिब्बों से भी छोटे होते हैं।) तो महेश को उसकी बात समझ में आ गई।


क्रमशः 

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2 Comments

Mohammed urooj khan

04-Feb-2023 05:51 PM

👌👌👌👌

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Gunjan Kamal

04-Feb-2023 05:49 PM

बेहतरीन शुरुआत 👌👏🙏🏻

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